आज हमारे भारत में भ्रष्टाचार महगाई चरम सीमा पर पहुंच गई है। और सरकार हर मुमकिन प्रयास कम करने में लगा रही है। परंतु अंत मे ढाक के तीन पात ही नजर आ रहा है। एक तरफ कहीं कुछ कम होने के आसार नजर आने के साथ दूसरे छोर पर अलग ही नजारा दिखता है। आज "क्या करें क्या न करे" कोई विकल्प नजर नही आ रहा है। कहीं कुछ भूल अवश्य हो रही है। गरीब तो ठीक आज ज्यादातर अमीर से अमीर व्यक्ति आज गुमराह हुआ खोया खोया नजर आ रहा है। शांति सुखी जीवन आंनन्द मय जीवन कैसे प्राप्त करें? उसका कोई मापदंड नजर नही आता। गरीब भाई बहनो के पास आज प्राथमिक सुविधाओ जैसे रोटी कपडा मकान उपल्ब्ध नही है | कम से कम आज ए इस आस विश्वास से जी रहे है। कि इन सुविधाओं की पूर्ति के बाद जो होगा वह ही सुख है वह ही आनन्द है| हमे भी मिल सकता है आज नही कल मिलेगा और इसी आस मे गरीब से गरीब अपनी जिन्दगी निकाल देता है। आइए अब इस के उपर के व्यक्ति जिनके पास आज आधुनिक वैज्ञानिक की उच्चतम सुविधा है। धन- दौलत की कहीं कोई दूर- दूर तक कमी नही है। हर प्रकार की सुविधा हर पल उपल्ब्ध है। अब कुछ बाकी नही रहा । आइए अब उन की जिन्दगी की समस्याओ उनकी मुसीबतो उनके दुख दर्द के वारे में जाने । आज ए सबसे दीन हीन नजर आ रहे है। आखिर क्या हुआ? आज ऐसे व्यक्तिय़ॉ का काफी लम्बा समूह है उनकी संख्या काफी बढ रही है।आज य़ॆ बडी से बडी बीमारिय़ॉ का शिकार हो रहे है।आज ज्यादा से ज्यादा भ्रस्टाचार बलात्कार रेप महगाई अक्सर सभी दुखद से दुखद कार्य करने वाले करवाने वालो की संख्या मे ज्यादा तर अमीर ही नजर आ रहा है। आखिर क्या हुआ आज ए विकृतिया कहां से आ गयी आज हमारा संस्कारी अमीरी विद्वानो को , हमारे तथाकथित साधु महात्माओ को आज हमारी सभ्यता संस्कृति को क्या हो गया? कहीं हम कुछ चूक तो नही रहे है। कहीं हम कुछ भूल तो नही रहे हैं। कहीं हम रास्ते से भटक तो नही गये। आज हमारे कृष्ण की मधुर वाणी आनन्द मय जीवन के सूत्र जैसे खो गये । आज हमारे बुद्ध की गरिमा कहां खो गयी । भगवान महावीर की निर्दोशिता कहीं खो गयी। आज पैगम्बर मोहम्म्द की जीवन यात्रा आज उनका संदेश कहीं दूर दूर तक नजर नही आता । आखिर हमारे भगवान जरथोस्त्र का हसता हुआ धर्म कहा खो गया। कहां गयी कबीर सूरदास रहीम तुलसीदास की वाणी। आज जब हमारा देश सदियों से गुरूवर की गद्दी पर वैठता रहा आज अचानक हम गरीब कैसे हो गये ।आज तक हम पूरे दुनिया को देते रहे आज अचानक हम खाली हो गये । और हमे पता भी नही चला । आज हम हर चीज की मांग कर रहे है। आज हमारे देश में उनकी जरूरत आ गयी है जिन्हे हम कभी देखना पसन्द नही करते थे। आज हम उन्हे हाथ मिलाकर गौरांवित महसूस कर रहे हैं।सदियो से देने वाला भारत आज अचानक गरीब कैसे हो गया।
आइए कम से कम आज से हम अपनी गरिमा अपना रहस्य अपनी पद प्रतिष्ठा अपना गौरव कब और कैसे कहां खोया आईए इसका एक बार चिंतन करे।
आज कुछ वर्षों से वैज्ञानिक एक रह्स्य की खोज कर रहे हैं जिसे कभी हमारे ऋषि मुनि ए बी सी डी की तरह पढाते थे आज उसे ला ओफ अट्रेक्शन, गोड सिक्रेट के नाम से जाना जाता है। आज जिस की खोज आधुनिक वैज्ञानिक करोडो रूपये लगाकर खोज नही पा रहे हैं उसे हमारे ऋषि मुनि कभी आंख बंद करके बता दिया करते थे। क्या आज उन रहस्यो का हमे पता होता था क्या वह टेक्निक वह राज को हमारे ऋषि मुनि जानते थे क्या उन पर हमारा कोई आधिपत्य था ? क्या आज हम कुछ भूल कर रहे है? अवश्य आज हमारी बादशाहत आज हमारी विराशत आज हमारी मालकियत आज हमारे सिद्धांत आज हम सभी को फिर से उस दिशा में फिर से सोचना चाहिये। आज उस खजाने के मालिक को कैसे मिला जाय आज उस मालिक के मिलने का मार्ग जो हमारे ऋषि मुनियो द्वारा बताया गया था। आज वक्त आ गया हमे उसकी दिशा में फिर से जाना होगा आज हम अपने मालिकियत अपने वैभव अपनी गरिमा को प्राप्त करने के लिये फिर से उसी राह पर हमे गुजरना होगा। उसके सिवा कोई विकल्प नही है। आईए अब आज से उस परम रहस्य उस परम खजाने के मिलने के मार्ग पर चले। जिसकी चर्चा हमारे सभी धर्मो के ऋषि मुनियो महात्माओ संत वुजुर्गो ने किया है। दिया जले अगम का विन वाती विन तेल। अप्त दीवो भव।
आईए उसकी दिशा में जाने के कुछ प्रारम्भिक सूत्रो की चर्चा करे। आज मंथन करना चिंतन करना अति आवश्यक हो गया है। धर्म और विज्ञान दो महत्वपूर्ण साधन हर दिशा में काम करते है। आज शायद हम दोनो से दूर हो गये हैं। अब हमे इन दोनो से अलग- अलग और साथ मे ले कर चलने की आवश्यकता है।
सम्पादक – डा.आर.आर.मिश्रा लोकरक्षक नवसारी
सम्पादक – डा.आर.आर.मिश्रा लोकरक्षक नवसारी
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